आपदा जोखिम न्यूनीकरणकी सेण्डई रूपरेखा
उत्तराखण्ड़ राज्य अनेकों आपदाओं के प्रतिअत्यन्त संवेदनशील है जिनमें भूकम्प, भूस्ख्ालन, वनाग्नि, बाढ़, त्वरित बाढ़, अतिवृष्टि, अनावृष्टि व बादल फटना प्रमुख है। क्षेत्र में घटित कोई भी बडी आपदा वर्षोकी मेहनत से विकसित अवसंरचना सुविधओं को क्षति पहुंचाने के साथ-साथ विकास की गति को बाधित कर सकती हैं।
उक्त के दृष्टिगत यह अत्यन्त आवश्यक होजाता है कि समय रहते आपदाओं के रोकथाम, न्यूनीकरण एवं प्रबन्धन हेतु एक प्रभावी कार्ययोजना विकसित कर उसकाक्रियान्वयन किया जाये ताकि आपदा से सम्भावित क्षति को यथासम्भव न्यून किया जासके। भारत सहित अन्य सभी देशों द्वारा अंगीकृत आपदा जोखिम प्रबन्धन की सेन्डईरूपरेखा हमें ऐसा करने का पर्याप्त अवसर प्रदान करती हैं। 2015 से 2030 की समयावधि के लिये विश्व समुदाय द्वारा सहमत सेन्डई रूपरेखा निम्नलिखित०४ प्राथमिकताओं पर आधारित है:
१.आपदा जोखिम की समझ: इस प्राथमिकता के अन्तर्गतकी जाने वाली कार्यवाही निम्नवत् है:
· प्रासंगिक आंकडों केसंग्रह विश्लेषण, प्रबन्धन व उपयोग को प्रोत्साहन तथा उपयोगकर्ताओं की आवश्यकताओं को ध्यानमें रखते हुये व्यावहारिक सूचनाओं का उपयोग
· आपदा में हुयी क्षति काव्यवस्थित मूल्यांकन, विश्लेषण, अभिलेखीकरण व आपदान-प्रदान
· आपदा के आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण एवं सांस्कृतिकविरासत पर पड़ने वाले प्रभावों की समझ
· आपदा के अनुभव तथा श्रेष्ठप्रथाओं का प्रशिक्षण एवं शिक्षा के माध्यम से सभी हितधारकों के साथ उक्त काआदान-प्रदान
· आपदा जोखिम मूल्यांकनतथा नीतियों में वैज्ञानिक ज्ञान का समावेश तथा पारम्परिक, स्वदेशी व स्थानीयज्ञान तथा प्रथाओं का उपयोग
· आपदा की रोकथाम व न्यूनीकरणकी संस्कृति को प्रोत्साहन
२. आपदा जोखिम प्रबन्धन के लिये आपदा जोखिमप्रणाली का सुढृढीकरण- इस प्राथमिकता पर निम्नवत् कार्यवाही की जानी है:
· स्थानीय व राज्य स्तरपर चिन्हित जोखिमों से निपटने के लिये तकनीकी, वित्तीय तथा प्रशासनिक आपदा जोखिम प्रबन्धन क्षमता का आकंलन
· भूमि उपयोग एवं शहरीनियोजन, भवन निर्माण रीति संहिता, पर्यावरण और संसाधनप्रबन्धन तथा स्वास्थ्य एवं सुरक्षा मानकों को सम्बोधित करने वाले नियम-कानूनों का सुदृढीकरण वउक्त के अनुपालन हेतु आवश्यक व्यवस्थायें
· आपदा जोखिम न्यूनीकरण परसेण्डई रूपरेखा के क्रियान्वयन हेतु जनपद वह राज्य स्तर पर आवश्यक व्यवस्थायें
· आपदा जोखिम प्रबन्धन केप्रोत्साहन के लिये उपयुक्त व्यवस्थायें
· आपदा संवेदनशीलता, मानव बस्तियों की सुरक्षाव पुनर्वास हेतु व्यवस्थायें
३.प्रतिरोध्यता के लिये आपदा-जोखिम न्यूनीकरण मेंनिवेश- इस प्राथमिकता पर निम्नवत् कार्यवाही की जानी है:
· विकास व आपदा जोखिम न्यूनीकरणरणनीति के सभी प्रासंगिक क्षेत्रों में क्रियान्वयन के लिये प्रशासन क सभी स्तरोंपर संसाधनों की उपलब्धता
· शहरी एवं गा्रमीणक्षेत्रों में आपदाओं के वित्तीय प्रभावों को कम करने के लिये जोखिम हस्तानान्तरणउपकरणों को प्रोत्साहन
· ग्रामीण विकास योजनाओंमें आपदा-जोखिम मून्यांन, मानचित्रण एवं प्रबन्धन को बढावा
· राज्य के महत्वपूर्णबुनियादी ढॉचे को सुरक्षित बनाना
· आपदा जोखिम कम करके भूख वगरीबी के उन्मूलन के उददेश्य को प्राप्त करना
४. प्रभावी प्रतिवादन के लिये पूर्व तैयारी कोबढावा तथा पुन:प्राप्ति, पुनर्वास व पुर्ननिर्माण में पहले से अच्छा और बेहतरनिर्माण- इस प्राथमिकता पर निम्नवत् कार्यवाही कीजायेगी:
· बचाव एवं राहत गतिविधियोंको शुरू करने के लिये जनजागरूकता को बढ़ावा देना तथा आवश्यक सामग्रियों के भण्डारणके लिये सामुदायिक केन्द्रों की स्थापना
· आपदा के पश्चात त्वरितप्रतिक्रिया हेतु सम्बन्धितों को आवश्यक प्रशिक्षण तथा आपातकालीन स्थितियों में बेहतर प्रदर्शन केलिये तकनीकी एवं रसद (Logistical) क्षमताओं की मजबूती
· आपदा के बाद पुनर्निमाण कीजटिल एवं महंगी प्रकृति को ध्यान में रखते हुये राष्टीय संस्थाओं के समन्वयहेतु प्रभावित समुदायों तथा व्यापार सहित सभी स्तरों पर विभिन्न संस्थानों, प्राधिकरणोंएवं सम्बन्धित हितधारकों के सहयोग को बढ़ावा देना।
सेण्डई रूपरेखा के क्रियान्वयन की प्रगति केलिये २०१५-२०३० की अवधि के नियत किये गये लक्ष्य निम्नवत् है:
· आपदा से होने वाली मृत्युदर में काफी कमी
· आपदा प्रभावित लोगों कीऔसत संख्या को कम करना
· सकल घरेलू उत्पाद केसापेक्ष आपदा से होने वाली आर्थिक क्षति में कमी
· क्षति के साथ ही स्वास्थ्यऔर शैक्षणिक सुविधाओं एवं महत्वपूर्ण बुनियादी ढॉचे और सेवाओं पर आपदाओं से होनेवाले व्यवधानों में कमी
· स्थानीय, जनपद व राज्य स्तर परआपदा जोखिम रणनीति अपनाने वाली संस्थाओं, विभागों की संख्या में वृदि
· इस रूपरेखा के क्रियान्वयनके लिये जनपदों के मध्य सहयोग को बढावा
· बहु आपदा पूर्व चेतावनीतंत्र (Multi-hazard Early Warning System) का सदृढीकरण तथालोगों तक चेतावनी का प्रसारण
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